चौ : - जौं अनीह व्यापक बिभु कोउ, कहहु बुझाई नाथ मोहि सोऊ !
अज्ञ जानि रिस उरजनि धरहु, जेहि बिधि मोह मिटइ सोइ करहु !!
यदि व्यापक ब्रह्म कोई दूसरा है तो हे नाथ ! वह भी मुझे समझा दीजिये !
नासमझ जानकार कर मन में क्रोध ना लाइये, बस मेरा अज्ञान मिटा दीजिये !
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