बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी, त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी !
धर अरु अचर नाग नर देवा, सकल करहिं पद पंकज सेवा !!
हे विश्वनाथ ! मेरी स्वामी, त्रिपुर के बैरी, आपकी महिमा तीनों लोकों में विख्यात है !
चेतन, जड़, नाग, मनुष्य और देवता सब आपके चरण कमलों की सेवा करते हैं !
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