गारी मधुर सुर देहिं सुन्दरि, व्यंग बचन सुनावहीं !
भोजन करहिं सुर अति विलम्भ, बिनोद सुनि सचु पावहीं !
जेवँत जो बढ़ेउ आनन्द सो, मुख कोटिहू न परइ कहो !
अँचवाई दीन्हे पान गवने, बास जहँ जाको रह्यो !!
सुंदरियाँ मीठे स्वर से गालियां देती हैं और व्यंग पूर्ण वचन सुनाती हैं ! देवता हसी और दिल्लगी सुनकर प्रसन्न हो रहे हैं और धीरे धीरे भोजन करते हैं ! देवताओं के उस आनन्द को करोड़ों मुख से भी नहीं कहा जा सकता !
सभी को हाथ मुँह धुलवा कर पान दिया गया ! उसके बाद सब बाराती अपने ठहरने के स्थान पर चले गए !
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