करेहु सदा संकर-पद-पूजा, नारि धरम पति-देव न दूजा !
बचन कहत भरि लोचन बारी, बहुरि लाइ उर लीन्हि कुमारी !!
पार्वती जी को उनकी माता ने समझाया कि शंकर जी के चरणों की सदा पूजा करना, स्त्री धर्म पतिव्रता के सिवा कोई दूसरा नहीं हैं ! ये वचन कहते हुए माता जी की आंखें भर आयीं और उन्होंने पार्वती को अपने ह्रदय से लगा लिया !
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