प्रेम बिबस मुख आव ना बानी, दसा देखि हरषे मुनि-ज्ञानी !
अहो धन्य तव जनम मुनीसा, तुम्हहिं प्रान सम प्रिय गौरीसा !!
प्रेम के आधीन हो कर मुख से बात नहीं निकलती है, उनकी देश देखकर ज्ञानी मुनि याज्ञवल्कय जी हर्षित हुए ! उन्होंने कहा, हे मुनीश्वर ! आपका जन्म धन्य है, आपको गौरीपति शंकर जी प्रान के सामान प्यारे है !
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