चौ :- हरि हर विमुख धरम रति नाहीं, ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं !
तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला, नित नूतन सुन्दर सब काला !!
जो विष्णु और शिव जी से विमुख हैं तथा जिनकी प्रीति धर्म में नहीँ हैं वे मनुष्य स्वपन्न में भी वहाँ नहीँ जा सकते ! कैलाश पर्वत पर विशाल बड़ का वृक्ष है जो सब समय नित नया सुहावना बना रहता है !
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