जासु भवन सुरतरु तरु होई, सह कि दरिद्र जनित दुःख सोई !
ससि भूषन अस ह्रदय बिचारी, हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी !!
जिसका घर कल्पवृक्ष के नीचे हो, क्या वह दरिद्रता से उत्पन्न दुःख सहन कर सकता है?
हे चंद्रभूषण नाथ ! ऐसा मन में विचार कर मेरी बुद्धि का भारी भ्रम दूर कीजिए !
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