नयननिह सन्त दरस नहीँ देखा, लोचन मोर पंख कर लेखा !
ते सिर कटु- तूंबर समतूला, जे न नमन हरि-गुरु-पद-मूला !!
जिन आँखों ने संतो के दर्शन नहीँ किये उनकी आँखें मोर की पंखों की तरह हैं !
उस जीवन का क्या फायदा जो प्रभु हरि और गुरु के चरणों में रमें नहीँ हैं !
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