तदपि जथा स्तृत जसि मति मोरी, कहिहउँ देख प्रीती अति तोरी !
उमा प्रस्न तब सहज सुहाई, सुखद सन्त सम्मत मोहि भाई !!
शिव जी बोले तो भी जैसा सुना हैं और जैसी मेरी बुद्धि है उसी प्रकार से तुम्हारी प्रीती देखकर कहूंगा ! हे उमा तुम्हरे प्रश्न सहज, सुहावने, सन्त सम्मत, सुखदायक और प्रिय लगने वाले हैं !
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