चौ : - निज भ्रमनहिं समुझहिं अज्ञानी, प्रभु परमोह धरहिं जड़ प्रानी !
जथा गगन घन पटल निहारी, झाँपेउ भानु कहहिं कुबिचारी !!
अज्ञानी मनुष्य अपना भ्रम नहीं समझते, वे जड़ प्राणी ईश्वर पर मोह का आरोपण करते हैं ! जैसे आकाश में बादलों को देख लोग कहते हैं कि बादल ढक गया !
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