बुधवार, 8 नवंबर 2023

श्री राम चरित्र मानस - बाल काण्ड

 चौ : - निज भ्रमनहिं समुझहिं अज्ञानी, प्रभु परमोह धरहिं जड़ प्रानी !

जथा गगन घन पटल निहारी, झाँपेउ भानु कहहिं कुबिचारी !!

अज्ञानी मनुष्य अपना भ्रम नहीं समझते, वे जड़ प्राणी ईश्वर पर मोह का आरोपण करते हैं ! जैसे आकाश में बादलों को देख लोग कहते हैं कि बादल ढक गया !

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