सिंहासन अति दिब्य सुहावा, जाइ न बरनि बिचित्र बनावा !
बैठे सिव विप्रन्ह सिर नाई, ह्रदय सुमिरि निज प्रभु रघुराई !!
जिस सिंहासन पर शिव जी को बैठने के लिए कहा गया उसकी विलक्षण बनावट का वर्णन नहीं किया जा सकता ! शिव जी भी अपने स्वामी प्रभु श्री राम का नाम ले कर और ब्राह्मणों को सिर नवा कर सिंहांसन पर बैठ गए !
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