दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर, जोरि हिम-भूधर कहो !
का देउँ पूरनकाम संकर, चरन-पंकज गहि रह्यो !!
सिव कृपासागर ससुर कर सन्तोष सब भाँतिहि कियो !
पुनि गहे पद-पाथोज मैना, प्रेम परिपूरन हियो !!
बहुत प्रकार का दहेज़ देकर फिर हिमवान ने हाथ जोड़कर कहा हे शंकर जी ! आप पूर्णकाम हैं, मैं आपको क्या दे सकता हूँ! यह कह कर उन्होंने शिव जी के चरन कमलों को पकड़ लिया ! कृपासागर शिव जी ने सभी प्रकार से ससुर को सन्तुष्ट किया और ससुर और सास को प्रेमपूर्वक हृदय से लगाया !
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