पुनि पुनि मिलति परति गहि चरना, परम प्रेम कछु जाइ न बरना !
सब नारिन्ह मिलि भेंट भवानी, जाइ जननी उर पुनि लपटानी !!
विदाई के समय पार्वती सब को बार बार भेंटती हैं और पाँव पकड़ कर सिर रखती हैं, उस प्रेम का
वर्णन नहीं किया जा सकता ! सब स्त्रियों से मिल कर पार्वती माता जी को लिपट जाती हैं !
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