जननिहि बहुरि मिलि चली, उचित असीस सब काहू दई !
फिरि फिरि बिलोकत मातु तन तब, सखी लै सिव पहि गई !!
जाचक सकल सन्तोषी संकर, उमा सहित भवन चले !
सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले !!
माता से मिलकर पार्वती चलीं सब ने उन्हे उचित आशीर्वाद दिया, वे बार बार माता को निहार रहीं हैं, तब सखियाँ उन्हें शिव जी के पास ले गयीं ! सब याचकों को संतुष्ट कर शंकर जी पार्वती संग अपने घर चले ! सब देवता प्रसन्न होकर फूल बरसाने लगे और आकाश में सुन्दर दुदुंभी बजने लगी !
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