सिव सम को रघुपति ब्रत धारी, बिनु अघ तजी सती अस नारी !
पन करि रघुपति भगति दिढ़ाई, को सिव सम रामहिं प्रिय भाई !!
शिव जी के समान राम जी के प्रति निश्चय और प्रेम रखने वाला कोई हो ही नहीं सकता!
पार्वती के राम जी के प्रति संदेह करने से ही शिव जी ने पार्वती को त्याग दिया और राम जी के प्रति
निष्ठा को दर्शाया ! राम जी को भी शिव जी से ज्यादा कोई प्रिय हो ही नहीं सकता !
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