चौ :- मैं जाना तुम्हार गुन सीला, कहउँ सुनहु अब रघुपति लीला !
सुनु मुनि आजु समागम तोरे, कहि न जाइ जस सुख मन मोरे !!
मैंने आपकी गुणशीलता जान ली, अब रघुनाथ जी की लीला कहता हूँ, सुनिए हे मुनि !
आपके सम्मिलन से आज मेरे मन में जो आनंद हुआ है वह कहा नहीं जा सकता !
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