चौ :- झूठेउ सत्य जाहि बिन जाने, जिमि भुजंग बिनु रजु पहिचाने !
जेहि जाने जग जाइ हेराइ, जागे जथा सपन भ्रम जाई !!
जैसे बिना जाने झूठ भी सच लगता है, जैसे बिना पहचाने रस्सी भी सांप लगती है ! जिनको जान लेने से संसार इस तरह लगने लगता है जैसे कोई सपना और सब भ्रम दूर हो जाते हैं !
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