करि प्रनाम रामहिं त्रिपुरारी, हरषि सुधा सम गिरा उचारी !
धन्य धन्य गिरिराज कुमारी, तुम्ह समान नहिं कोउ उपकारी !!
रामचन्द्र जी को प्रनाम करके शंकर जी हरषित होकर अमृत के सामान मधुर वाणी में बोले ! हे पर्वतराज की कन्या ! धन्य हो, धन्य हो तुम्हारे समान कोई परोपकारी नहीं है !
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