चौ :- सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा, गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा !
अगुन अरूप अलख अज जोई, भगत प्रेम बस सो होई !!
सगुन और निर्गुण में कुछ भेद नहीँ हैं ! मुनि, पुराण, पंडित और वेद ऐसा कहते हैं ! जो निर्गुण, बिना रूप का अप्रत्यक्ष और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेम के वश में होकर सगुन प्रगट होता है !
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