शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

श्री राम चरित्र मानस - बाल काण्ड

 दो :- रजत सीप महँ भास् जिमि, जंथा भानु-कर-बारि !

जदपि मृषा तिहुँ काल सो, भ्रम न सकइ कोउ टारि !!

एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई, जदपि असत्य देत दुःख अहिइ !

जौं सपने सिर काटइ कोई, बिनु जगे न दूर दुःख होई !!


जैसे सींप में चाँदी और सूर्य की किरणों में पानी भ्रम है और उस भ्रम को कोई मिटा नहीं सकता !

इसी तरह संसार भी भगवान सहारे व्यवस्तिथ है, यदि सपनें में कोई सिर काट ले तो बिना जागे वह दुःख दूर नहीं होता है !

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